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लोकनियाँ / परमानंद ‘प्रेमी’
Kavita Kosh से
माय गे भैया के लोकनियाँ हम्हीं जैबै।
जुत्ता, मौजा, चश्मा नया पैन्टो सिलबैबै॥
पालकी प’ जखनी बैठतं भैया हाथों में लैक’ रोमाल।
भैया साथें हम्हूँ बैठबै चलबै दोनों ससुराल॥
जखनी भैया के गाल सेदैतै हम्हूँ सेदबैबै।
माय गे भैया के लोकनियाँ हम्हीं जैबै॥
मड़बा प’ जखनी जैतै भैया हम्हूँ जैबै साथें।
आठ चोट अठंगर कुटतै आठ आदमी साथें॥
हम्में आरो भौजी के भाय नें लाबा मिलैबै।
माय गे भैया के लोकनियाँ हम्हीं जैबै॥
खीर खायल’ जखनी देतै रूसी जैतै भैया।
सास-ससुर आबी कहतै देभौं धेनु गैया॥
गप-गप तब, भैयां आरो हम्हूँ खैबै।
माय गे भैया के लोकनियाँ हम्हीं जैबै॥