लोकल के डब्बे में हिरोईन / निलय उपाध्याय
लोकल का डब्बा सवारियों से भरा था
जब एक औरत घुसी
लोगो पर गहरी नज़र डाल
जैसे रोते हुए कहा –- मेरा बच्चा
और अजीब सी बदहवासी में निकल गई बाहर
जाते ही किसी ने कहा अरे पहिचाना उसे
कौन थी वह
सबको लग रहा था चेहरा उसका
जाना-पहिचाना
नाम आते ही पहचान गए सब
वह थी बालीवुड फ़िल्मों की हिरोइन
कई निकलने को तत्पर हुए
मगर चल पड़ी लोकल और चर्चा निकल गई
अभी तीन साल पहले उसकी शादी हुई थी
एक बच्चा भी था
पति से तलाक के क़िस्से भी गरम थे
क्या हुआ बच्चे को पर अटक गई बात
घर आने के बाद डब्बे में सवार हर आदमी ने
अपनी बीबी से कहा,
बीबी ने बताया मुहल्ले की औरतों को
मुहल्ले की औरतों ने दूसरी को
और देखते-देखते फैल गई
लोकल के डब्बे से घर-घर तक हिरोईन के
आने की ख़बर
और सबके चेहरे पर तैर गया
लाख टके का यह सवाल
आख़िर क्या हुआ उसके बच्चे का
गहराती रही रात
गहराता रहा दुख, सोचते रहे सब
ज़रूर साज़िश होगी उसके पति की
और जैसा कि समय है
पैसों के लिए अपहरण भी हो सकता है
पता नही किस हाल में होगी
बेचारी नन्ही-सी जान
औरत
औरत ही होती है
चाहे फ़िल्मों की हो या घर की
कुछ ने मन्नतें मानी,
कुछ को नींद नही आई रात भर
अगली सुबह
अख़बार में छोटी-सी ख़बर थी
कि अपने आने वाले सीरियल जिसमे गुम हो जाता है
मुम्बई के किसी स्टेशन पर एक माँ का बेटा
का प्रमोशन करने चर्च गेट स्टेशन गई थी
बालीवुड फ़िल्मों की हिरोइन