लोकसभासँ शोकसभा धरि / बुद्धिनाथ मिश्र
महगू बाजल --
कते महगी आबि गेल छै !
दालि-चाउरमे तँ
आगि लागिए गेल छै ।
कथीसँ डिबीया लेसी
मटियाक तेलो
उड़नखटोला भ, गेल।
मुदा मन्त्रीजी नहि मानलनि ।
लुंगी उठा-उठा क’ देखबै छथि-
एहि विकासशील अर्थव्यवस्थामे
कते सस्त भ’ गेल छै
लोकक जान-परान
महानुभावक चरित्र
बेनगंन मौगीक शील ।
कतेक सस्त भ’ गेल छै
पंडिज्जीक पोथी-पतरा
गोसाउनिक गीत
चिनबारक माटि
आ टीवी चैनलक मौसगर मनोरंजन ।
मन्त्रीजी नहि देखा रहल छथि
ओ सुरंग जे लोकसभासँ शोकसभा धरि जाइ छै ।
ओ नहि देखा रहल छथि
नीलामी घर
जाहमे मैनोक पात बिकाइ छै
करोड़क करोड़मे !
ओ नहि देखा रहल छथि
बघनखा पहिरने हाथ
जे महानसँ महान योजनाक
मूड़ी पकड़ि क’ सौंसे चिबा जाइ छै ।
कुसियारक रस बटैछ सदनमे
आ सिट्ठी फेकाइछ
गामक माल-जालक आगाँ ।
लोक माल जकाँ
मरि रहल अछि
कि माल-जाल लोक जकाँ-
से कहब कठिन ।