भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोक-कल्याण / राजू सारसर ‘राज’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अकूरड़ी रै
कूटळै मांय सूं
नैनां-नैना टाबरियां नैं
खावण री जिन्सा चुगतां
अर बिना दवाई लावारिस
सांसा छोडतां लोगां नैं
देखतां
घणौं गुमेज होवै
अर म्हैं नवाऊं माथौ
म्हारै लोक कल्याणकारी राज नै।