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लोक गीत-लहलह लहरै / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
लह-लह लहरै-लहऽरै बाली
हमरोॅ खेतो के आरी लहरै बाली।
माघ महीना गोछियैलोॅ रंग साड़ी
सुन्नर-सुन्नर सजइलोॅ धारी
दूरोॅ सेॅ झलकै छै जेकरोॅ किनारी
लहरै बाली, हमरोॅ खेतोॅ के आरी। लहरै बाली।
चललै किसान लेॅ केॅ कचिया कुदारी
बान्ही ”केॅलौआ“ सब खेतवा के ओरी
फुदुर-फुदुर फुदकै छै आरी-कछारी
लहरै बाली, हमरोॅ खेतोॅ के आरी। लहरै बाली।
फसलोॅ के देखी भरै छै किलकारी
गोरी के मानो सुरतिया निहारी
गावै ई ”धीरज“ दिन खुशी के बिचारी
लहरै बाली-हमरोॅ खेतोॅ के आरी। लहरैबाली।