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लोक गीत / 5 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ये वाहली वाजे, ये आभी तोलाए,
हरियो डंगर गहरो बल्यो।
ये वाहली बाजे, ये आभी तोलाए,
हरियो डूंगर गहरो वल्यो।
मोर-पपीहा बोलि रहया, मेघ गगड़ी रहया,
सुपड़ा एवड़ो बलावो ने चोखा अतरी विजली।
रे काढ्यो रे बलाओ, हइ रहि विजली।
खांदे लेधो बलावो, कांखे लेधि विजली,
हातेम् लेधि वाहली, खांद पर लेधि कुराड़ी,
काइ रे मेंघला काहाँ वरसजे?
पाप नी जमी वरसजे, तिं पाप धोवाए।
काइ रे मेंघला धरमनी जमि वरसि निहिं जाण्यो।

- वर्षा आगमन के समय प्रकृति का रूप किस प्रकार दिखाई देता है, उसका
वर्णन इस गीत में बताया गया है-

सुरभि हवा में पानी की खुशबू वाली भीनी सुगन्ध आ रही है। ये जलभरी हवाएँ (मानसून) आ रही हैं। हरा जंगल और गहरा गया है। मोर और पपीहे बोल रहे हैं। बादल गर्जना कर रहे हैं। सूप के समान बादल और उसमें चावल के समान बहुत छोटी बहुत छोटी बिजली चमक रही है। इन्द्रदेव ने कन्धे पर बादल लिया,
काँख में बिजली ली, हाथ में वायु ली, कन्धे पर कुल्हाड़ी ली है। मेघ कहाँ बरसेंगे? पाप की भूमि पर बरसें, जिससे पाप धुल जायेगा।

हे मेघ! क्या धर्म-भूमि में बरसने वर्षा आने के संकेत इस प्रकार मानते हैं-

(1) खेड़िया चीड़ा बोलता है तो वर्षा की संभावना रहती है।
(2) कोयल बोलती है तो वर्षा की संभावना रहती है।
(3) चूही ज्यादा आवाज करती है तो ज्यादा वर्षा होती है।
(4) टुचक्यु पक्षी बोलता है तो बादल होते हैं और पानी बरसता है। यह पक्षी मेघ
    राजा का जवाँई कहलाता है।
(5) बोपियो चिड़िया-जुपोरे-जुपो करके आवाज करती है तो पानी आता है
   (खेत जल्दी जोतो पानी आने वाला है)।
(6) बोपियो खर-खर करके बोलती है तो पानी बरसना बन्द होने का संदेश मानते
    हैं। अगर खेती तैयार नहीं करते हैं तो चिड़िया किसानों को गालियाँ देती हैं।
(7) देतेड़ा पक्षी- सुखे-सुखे देतेड़-देतेडू बोलता है तो वर्षा होती है।
(8) लेचका पक्षी- लेचका-लेचका बोलता है, कुकु-कुकु भी बोलता है तो वर्षा होती
    है एवं अच्छी फसल पकने के बाद मकु-पाक्यु, मकु-पाक्यु करके बोलता है।