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लोगी तुम ? / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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तुम्हें दूँ
ऐसा कुछ भी तो नहीं
अगर एक नया नाम दूँ
तुम लोगी ?
वह नाम कोई विजय-तिलक
लगाएगा नहीं तुम्हारे ललाट पर ।
एक वृद्ध कविता लेखक
पाएगा शान्ति उस नामकरण से
एक दिन बिजली चली गयी थी भर संध्या बेला
मोमबत्ती जलाकर तुमने
ऊँची कर पकड़ ली थी उसकी शिखा
उस समय था अगहन मास,
उसी दिन से मन-ही-मन
तुम्हें पुकारने लगा हेमन्तिका !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी