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लोगों का कहना है घर से बाहर ही चल / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
लोगों का कहना है घर से बाहर ही चल
फिरकर देखो उनिया कैसी है। कितने रंग
भरे हैं चित्रों में। किल-बिल सब गलियाँ हैं तंग
अँधोरियों से भरा जिस्म है। मची है हलचल।
घर में ही बैठे रहने से क्या है, आओ
कभी उधर आओ - प्रेस क्लब, कॉफ़ी हाउस में
भी तो आकर बैठो। पत्रकार, कवि आपस में
मिलते-जुलते हैं। वहाँ का सच भी तो पाओ
जीवन में। क्या करते हो आक-धतूरे की
बातें। उधर क्या धरा खेतों-वेतों में, वह
सब पिछड़ी दुनिया है। अधुनातन है अब यह
थोड़ा ’सिप’ करके देखो। ढलते जीवन की
कली खिलेंगी। हवा उधर की भी खाओ
मिल-जुलकर चलो सभी से, भारी यश पाओ।