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लोगों की आशाओं के सम्बल का दिन / नन्दी लाल

लोगों की आशाओं के सम्बल का दिन।
हंगामे की भेंट चढ़ गया कल का दिन।

मांगोगे उससे तो सब कुछ कह देगा,
ज्यों हिसाब रखता हो इक इक पल का दिन।

ढूँढ ढूँढ कर कूड़े में खाना कपड़ा,
यूँ कट जाया करता है पागल का दिन।

शाम सुना था कल को प्रियतम आयेगा,
होगा अपना भी तब इस चंचल का दिन।

दोहे, कविता छंद लिखे जाते थे तब,
आज वही कविता में गीत गजल का दिन।