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लोगों ने मुझे लूटा है मेहमान बना के / संतोष आनन्द
Kavita Kosh से
सब जल गए अरमान मेरी जान में आ के
लोगों ने मुझे लूटा है मेहमान बना के।
खुशियों के खजानों से कभी जुड़ न सके हम
आजाद परिंदों की तरह उड़ न सके हम।
आंसू को हटाते हैं मुस्कान सजा के
लोगों ने मुझे लूटा है मेहमान बना के।
मतलब यही बताती है हर हुस्न की किताब
मौसम में तो काटों पे भी आ जाता है शबाब।
छीला है कालेजा मेरा एहसान जता के
लोगों ने मुझे टूटा है मेहमान बना के।
मिलते ही मुझे जिंदगी बीमार हो गई
चारागरों की सब दवा बेकार हो गई।
जीने की तमन्ना जगी श्मशान में जाके
लोगों ने मुझे लूटा है मेहमान बना के।