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लोग अब परिंदों के रंगीन परों को निहारते नहीं / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
लोग अब परिन्दों के रंगीन परों को निहारते नहीं
उन्हें बस उखाड़ते हैं
ताकि कोट ऊँचे दामों पर बेचे जा सकें