भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग उल्फ़त में छक गये होंगे / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग उल्फ़त में छक गये होंगे।
तो क़दम भी बहक गये होंगे॥

इश्क़ की रुत जहाँ-जहाँ पहुँची
गुल चमन में महक गये होंगे॥

जब अँधेरा घना हुआ होगा
नभ में तारे चमक गये होंगे॥

जब समेटा था इश्क़ ने दामन
ग़म के कंगन खनक गये होंगे॥

प्रेम में ही न डूब पाये जो
राह में वह ठिठक गये होंगे॥

दर्द दिल का रहे छुपाते पर
अश्क़ फिर भी छलक गये होंगे॥

जिनको मंजिल नहीं नज़र आयी
वो सफ़र में भटक गये होंगे॥