भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग किनारे पार / अमित कुमार मल्ल
Kavita Kosh से
लोग पार कर रहे थे
मैं किनारे पर रुक गया
कि
बच्चे खेलते पार कर ले
जवान दौड़ते पार कर ले
बे सहारा सहारा लेकर पार कर ले
मैं वक्त बनकर बूढ़ा हो गया
किनारे पर ही खड़ा रहा