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लोग क्या से क्या न जाने हो गए / शमभुनाथ तिवारी
Kavita Kosh से
लोग क्या से क्या न जाने हो गए
आजकल अपने बेगाने हो गए
आदमी टुकड़ों में इतने बँट चुका
सोचिए कितने घराने हो गए
बेसबब ही रहगुजर में छोड़ना
दोस्ती के आज माने हो गए
प्यार-सच्चाई-शराफत कुछ नहीं
आजकल केवल बहाने हो गए
वक्त ने की इसकदर तबदीलियाँ
जो हकीकत थे फसाने हो गए
जो कभी इस दौर के थे रहनुमा
अब वही गुज़रे ज़माने हो गए
आज फिर खाली परिंदा लौट आया
किसकदर मुहताज़ दाने हो गए
थे कभी दिल का मुकम्मल आइना
अब मगर चेहरे सयाने हो गए
जब हुआ दिल आसना ग़म से मेरा
दर्द के बेहतर ठिकाने हो गए