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लोग जब झूठ की राह चलने लगे / रंजना वर्मा

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लोग जब झूठ की राह चलने लगे ।
नाश की ओर ही अपने बढ़ने लगे।।

थे सभी मीत जब पास थी सम्पदा
धन गया तो पराया समझने लगे।।

हम वतन के लिये जान देते रहे
लोग हमको ही हैं शत्रु कहने लगे।।

चंद रुपयों की खातिर हुए स्वार्थी
बेवजह वृक्ष वन आज कटने लगे।।

दूसरों के लिये अब न जीता कोई
स्वार्थ के सिंधु में लोग बहने लगे।।

स्वार्थ के मात्र नाते निभाते सभी
स्वार्थ पूरा हुआ तो खिसकने लगे।।

नीर मिलता नहीं स्वच्छ, गंगा मलिन
जन हवा के लिये भी तरसने लगे।।