भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग जितने मिले- ‘स्वर’ बदलते हुए / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
लोग जितने मिले, ‘स्वर’ बदलते हुए
वक्त के साथ तेवर बदलते हुए
हर नए साल के संग पुराने हुए
लोग पिछला कैलेण्डर बदलते हुए
अपने सामान बच्चों व पत्नी सहित
हम भटकते रहे घर बदलते हुए
ऊँची -ऊँची उड़ानों के उन्माद में
रोज पंछी मिले पर बदलते हुए
आदमी फिर भी पूरा बदलता नहीं
जिन्दगी भर निरन्तर बदलते हुए