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लोग जितने मिले- ‘स्वर’ बदलते हुए / जहीर कुरैशी

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लोग जितने मिले, ‘स्वर’ बदलते हुए
वक्त के साथ तेवर बदलते हुए

हर नए साल के संग पुराने हुए
लोग पिछला कैलेण्डर बदलते हुए

अपने सामान बच्चों व पत्नी सहित
हम भटकते रहे घर बदलते हुए

ऊँची -ऊँची उड़ानों के उन्माद में
रोज पंछी मिले पर बदलते हुए

आदमी फिर भी पूरा बदलता नहीं
जिन्दगी भर निरन्तर बदलते हुए