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लोग तो चलते रहे साथ उजाले लेकर / राम गोपाल भारतीय
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लोग तो चलते रहे साथ उजाले लेकर
और हम बैठ गए पाँव के छाले लेकर
एक मुफ़लिस ने ग़ुरबत मे ही दम तोड़ दिया
लोग आए भी तो क्या शाल-दुशाले लेकर
कोई सच बात भी लाए ज़ुबाँ पर कैसे
रहनुमा ही हैं खड़े हाथ मे ताले लेकर
एक अभागन का पिता रोज़ अदालत जाए
हाथ की चूड़ियाँ औ’ कान के बाले लेकर
है यहाँ दोस्त की पहचान न दुश्मन का निशाँ
आ गए मुझको कहाँ चाहने वाले लेकर
कैसे पाग़ल हैं जो नफरत में उसे ढूँढ़ते हैं
कोई खंजर तो कोई हाथ में भाले लेकर