भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग पीछे थे मेरे हाथ में पत्थर लेकर / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
लोग पीछे थे मेरे हाथ में पत्थर लेकर
मैं कहाँ भागता शीशे का बना घर लेकर
प्यास सहरा में बुझा देंगे ये मेरे आँसू
मैं तेरे साथ हूँ आँखों में समुंदर लेकर
ऐसे हालात में जज़्बात भी मर जाते हैं
लोग मिलते हैं जहाँ हाथ में खंज़र लेकर
फिर चिराग़ों को बुझा दे न हवाओं का जुनून
घर में बैठे रहे सब रात का ये डर लेकर
ये मुहब्बत का सफ़र तनहा सफ़र रहता है
कौन चलता है यहाँ साथ में लश्कर लेकर