भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग पूजै छै यहाँ आदमी केॅ मारी केॅ / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग पूजै छै यहाँ आदमी केॅ मारी केॅ
तोहें गीता बुझी केॅ सुनतेॅ रहोॅ गारी केॅ
ऊ जे उठलोॅ रहै भीष्मे जकां तमतम करलें
तीर के शैय्या पेॅ सुतलोॅ छै थकी हारी केॅ
हुनकोॅ आबै में अभी महीना भरी देरी छै
कोठी रखलोॅ गेलोॅ छै कल्हें सें अजबारी केॅ
आंधी पानी रोॅ बड़ी जोर अबकी लागै छै
राखी ला जल्दी सभैं अपनोॅ छपरी छारी केॅ
कुर्सी पावी केॅ तोहें मोॅन हमरोॅ जारोॅ नै
कुर्सी देलेॅ छियौं ई देह अपनोॅ जारी केॅ
जिन्दगी पुतला छेकै भाँगना छै जेना हुवेॅ
कत्तेॅ दिन रखबौ तोहें एकरा ही सम्हारी केॅ
केना बचतै कहोॅ अमरेन कबूतर हमरोॅ
कोय बाजोॅ केॅ रखै आरो कोय शिकारी केॅ

-11.7.92