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लोग मुझसे पूछते हैं / अमरेन्द्र

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लोग मुझसे पूछते हैं जूही क्या, कचनार क्या है
मैं उन्हें अब क्या बताऊँ, दो दिलों का प्यार क्या है

क्यों सुबह में फूल का मन
ओस बन कर भीग जाता
दोपहर में विजन वन से
कौन पाती लिख बुलाता
रात के पहले पहर से, चाँदनी शृंगार क्या है
मैं उन्हें अब क्या बताऊँ, दो दिलों का प्यार क्या है

नींद में दुनिया लगे क्यों
झील बनकर गीत गाती
और जब आँखें खुले तो
एक मरघट छोड़ जाती
फूलों की घाटी में खुशबू का ये हाहाकार क्या है
मैं उन्हें अब क्या बताऊँ, दो दिलों का प्यार क्या है।

आज तक मैंने न जाना
धड़कनों के राग सप्तम
कुछ अभी था शोर जैसा
वह अभी है बहुत कम-कम
गूंज पर यह गूँज होती, यह मधुर गुँजार क्या है
मैं उन्हें अब क्या बताऊँ, दो दिलों का प्यार क्या है।

मैं भटकता ही रहा हूँ
चन्दनों की छाँव में बस
मोर, पपीहा और कोयल
के सुनहरे गाँव में बस
चाहता हूँ जान लूँ, इस पार क्या, उस पार क्या है
मैं उन्हें अब क्या बताऊँ, दो दिलों का प्यार क्या है।