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लोग मुर्दों से मज़हब बचाते रहे / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
लोग मुर्दों से मज़हब बचाते रहे
कुछ गड़ाते रहे, कुछ जलाते रहे॥
इसलिए अन्न लगता नहीं जिस्म को
आप खाने से ज़्यादा गिराते रहे॥
गिड़गिड़ाते रहे वह दो उर्याँ बदन
लोग आते रहे लोग जाते रहे॥
(निर्भया कांड का निर्मम सच)
हमने बच्चों की ख़ातिर बनाये हैं बम
तुम तो बच्चों को ही बम बनाते रहे॥
ख़ाक़ बस्ती के होने की बस ये वजह
आग से आग सारे बुझाते रहे॥
पेट अक्सर यूँ बच्चों का हमने भरा
गर्म रोटी के किस्से सुनाते रहे॥
डूब के तूने "सूरज" बताया हमें
बस उजाले ही के रिश्ते-नाते रहे॥