भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग / येव्गेनी येव्तुशेंको

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहीं के भी लोग अरुचिकर नहीं हैं
ग्रहों के इतिहास की तरह है उनकी नियति

उनमें कुछ भी विशिष्ट नहीं है
और ग्रह से भिन्न है ग्रह

और यदि एक व्यक्ति विस्मृत रहता है
उसी विस्मृति में बनाता है दोस्त
अरुचिकर नहीं है विस्मृति

हर एक के लिए, उसका संसार निजी है
और उस संसार में एक श्रेष्ठ क्षण
और उस संसार में एक त्रासद क्षण
ये क्षण भी निजी हैं

व्यक्ति जब मरता है
मर जाता है उसके जीवन का पहला हिमपात
चुम्बन और संघर्ष और उसकी स्मृतियाँ
ये उसके साथ जाते हैं

वह छोड़ जाता है किताबें
और पुल व कैनवास व मशीनें
उन लोगों के लिए
जिनकी नियति जीवित रहना है

लेकिन जीवित रहना है जिनकी नियति
क्या जाता है उनका
कुछ भी तो नहीं

हाँ, खेल के नियम से कुछ चला जाता है
लोग नहीं मरते
पर शब्द मर जाते हैं उनमें
किसको हम अपराधी मानें
पृथ्वी के प्राणियों में
किसको?

तत्त्वतः भला हम जानते क्या हैं?
भाई अपने भाई को जानता है क्या
दोस्त अपने दोस्त को
और प्रेमी अपनी प्रेमिका को कितना जानता है

अपने पितामहों को ही हम कितना जानते हैं
क्या हर बात उनकी
नहीं, कुछ भी तो नहीं

मर गए वे
अब उन्हें
लौटाया नहीं जा सकता
उस रहस्यमय संसार से

और मैं
हर समय, बार-बार
रचना हूँ शोकगीत
विध्वंस के विरोध में