भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग / सौरभ
Kavita Kosh से
जानते हुए भी मुकर जाते लोग
ऐसा कमाल क्यों दिखाते लोग
देख कर भी हमें नहीं देखते
वक्त पर अँधे हो जाते लोग
वक्त पड़ने पर कुछ भी करते हैं
स्वाभिमान क्यों भूल जाते लोग
ऊँचा उठने के लिए मिट जाते लोग
ऐसा कमाल क्यों दिखाते लोग
कभी गधे पर बरसाते हैं डँडे
कभी उसे बाप बना लेते लोग
ऐसे दोगले क्यों हो जाते लोग
थोड़ा मिलने पर ज्यादा दर्शाते लोग
जरूरत पर दाँत फिचकाते लोग
ऐसा खेल क्यो दिखलाते लोग।