लोहा अर सोना / रामफल चहल
सुनार की पछीत म्हं लुहार आ ठहरया कुट्टण लाग्या फाली
अहरण पै धर मारै हथौड़ा संडासी तै पकड़ै घरआली
जब सोन्ने नै खुड़का नहीं सुहाया तो चांदी तै बतलाया
कमजात कुरूप कम अक्ल लोहे नै देख कितणा शोर मचाया
चांदी बोल्ली जाकै धमकादे क्यूं बगड़ नै सिर पै ठारह्या
लागै थोड़ी रोवै घणा क्यूं यो आपणी जात दिखा रह्या
फेर सोन्ने नै लोहा जा टोक्या रै काले इसा के बिगड़ै सै तेरा
मैं अर चांदी ठुक-ठुक पिटते तू क्यूं इतने रूक्के दे रह्या
छोह म्हं आकै लोहा बोल्या तम तो दोषां कारण दुख पाते
शब्द स्पर्श रूप रस गंध पांचू मौत के मूंह ले जाते
तू गोरी के बदन कै चिपटया रहता ज्यां तैं मार घणी खावै
तेरे गोरे रंग पै गोरी रहै आशक न्यूं बार बार पीट्या जावै
तू कान्ना सजै छाती चढ़ै गल म्हं भी लिपट्या पावै
आंगली पकड़ कै पौंहचै पकड़ै नाक म्हं भी तू घुस जावै,
चांदी पांयां पड़ती हाथां सजती गल म्हं हंसली बन ंजावै
आशकां का हाल योहे हो रोवै कम चोट घणी खावैं
अर सुण, सुवर्ण नै तीनूं तकैं कवि व्याभिचारी चोर
मेरे दिल का दुखड़ा सुण ले क्यूं घणा मचाऊं शोर
तमनै तो बेगाना लोहा पीटता चहल न्यूं समझावै
पर आपणे न कोए आपणा ए पीटै तो दर्द सह्या ना जावै