Last modified on 24 मई 2018, at 16:32

लोहा की कलाई सिंझाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

होरे चारो दिगबन्दी गे बिहुला हड़िया आन लागे।
होरे कचहरी आबेगे बिहुला कांच तो सर पासगे॥
होरे साझ ही अंगना बिहुला चल्लापा खोदल गे।
होरे कांच चूले आवेगे बिहुला सिझावे लगली गे॥
होरे ब्रह्मा आगे दिया गे बिहुला सिझावे लगलीगे।
होरे सत जे छई हे देवता दाल जे सीझते हे॥
होरे कलई सिझायेगे बिहुला भेगेली तैयार हे।
होरे कहबे लगली गे बिहुला बाबा से आवेगे॥
होरे कलाई सिझाये बाबा भइले तैयार हे।
होरे एतना सुनिये रे बासू चांदो पास गेला रे॥
होरे चलहुं से आवे हे साहू रसोई जेमए हे।

होरे एतना सुनिये रे चांदो भे गैले तैयार हे॥
होरे जाए तो जुमल रे बनियाँ रसोई जैमाए रे।
होरे रसोइ जेमिये बनियाँ चलो वरु भेल रे॥
होरे कहबे लागल रे बासु लगन चड़ाह रे।
होरे हमना कहब हे चांदो दिन जै थोर हे॥
होरे एतना सुनिये रे बाबा दइछै जबाब रे।
होरे चारो दिग आवे हे बाबा हमही छिलवायेबों रे॥
होरे पंचतो कुटुम हे बासो हमही नेतवाएब हे।
होरे नावकेर पाल से बासु बिछौना बिछायब हे॥