लोहे का स्वाद / लीलाधर मंडलोई
कुछ ऐसी वस्तुएं जिनके होने से
आत्महत्या का अंदेशा था
बदन से उतार ली गई
बेल्ट और दाहिने हाथ की अंगूठी
पतलून की जेब में पड़े सिक्के
बायें हाथ की घड़ी कि उसमें खतरनाक समय था
जूते और यहां तक गले में लटकती पिता की चेन
अब वे एक हद तक निश्चिंत थे
खतरा उन्हें इरादों से था
जिनकी जब्ती का कोई तरीका ईजाद नहीं हुआ था
सपनों की तरफ से वे गाफिल थे
और इश्क के बारे में उन्हें कोई जानकारी न थी
घोड़े के लिए सरकारी लगाम थी
नाल कहीं लेकिन आत्मा में ठुकी थी
वह एक लोहे के स्वाद में जागती रात थी
लहू सर्द नहीं हुआ था
और वह सुन रहा था
पलकों के खुलने-झुकने की आवाजें
पीछे एक गवाह दरख्त था
जिसकी पत्तियां सोई नहीं थीं
एक चिडिया गुजरके अभी गई थी सीखचों से बाहर
और वह उसके परों से लिपटी हवा को
अपने फेफड़ों में भर रहा था
बाहर विधि पत्रों की दुर्गंध थी
बूट जिसे कुचलने मं बेसुरे हो उठे थे
वह जो किताब में एक इंसान था
एक नए किरदार में न्याय की अधूरी पंक्तियां जोड़ रहा था
बाहर हंसी थी फरेबकारी की
और कोई उसकी किताबों के वरक चीथ रहा था
मरने की कईं शैलियों के बारे में उसे जानकारी थी
लेकिन वह जीने के नए ढब में था
इस जगह किसी मर्सिए की मनाही थी
वह शुक्रिया अदा कर रहा था चांद का
जो रोशनदान से उतर उसके साथ गप्पगो था
बैठकर हंसते हुए उसने कहा
लिखो! न सही कविता-दुश्मन का नाम