भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोहे के गीत / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।
दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्प जगाने होंगे ।
फिर से पूँजी के दुर्गों पर हमले करने होंगे ।
नया विश्व निर्मित करने के सपने रचने होंगे ।
श्रम की गरिमा फिर से बहाल करनी होगी ।
सुन्दरता के मानक फिर से गढ़ने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।
सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी ।
मानवता के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी ।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी ।
आशाओं के रण-राग हमें रचने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।