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लो आ गई जुलाई / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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लो आ गया जुलाई, लो आ गया जुलाई
मेघों को साथ लाई, लो आ गया जुलाई।
आसमाँ में देखो छाए हैं काले बादल ...
माँ को लुभाएँ ऐसे आँखों में जेसे काजल
एक में आषाढ़ है तो दूसरे में सावन
एक लग रहा सुहाना तो दूसरा है पावन
संग संग जिनके बिजुरिया भइयो आयी॥1॥
ल्पों आ गया जुलाई

बाग बगीचों में बरस रहा पानी
तालाबों और नदियों में मचल रहा पानी,
गिरती हुई बुंदे लगे, मोतियों की वर्षा
ऐसा कौन होगा जिसका दिल न होगा हर्ष
गर्मी से राहत दी और प्यास भी बुझाई॥2॥
लो आ गया जुलाई

मोरनी ने नृत्य किए, कोयल ने गीत गाए
झींगुरों की झांझ बाजी, मेंढको ने स्वर मिलाए
मचल-मचल, मचल रही मछलियाँ है मस्ती में,
कछुओं की बारात चली केंचुओ की बस्ती में
डावात में सभी ने हरियो घास खाई॥3॥ लो आ गई

खेतो में खड़े मक्का के भुट्टे
ओढ़ रखे हो जैसे हरे-हरे दुपट्टे,
बोयी हुयी धानों में आयेगी बाली,
नई गुलाब कलमे लगा रहे माली,
गेंदे भी गदगद है जुही इतराई
लो आयी जुलाई॥4॥

आम बेचारे पीले हो गए,
और जामुन हो गई काली,
सखी सहेलियाँ झूला झूले
बजा बजा के ताली,
हरियाली के बिछे गलीचे
सबका माँ हरषाई
लो आ गई जुलाई, लो आ गई जुलाई
मेघों को साथ लाई लो आ है जुला॥5॥
लो आ गई जुलाई