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लो देखो आ गया महँगाइयों कि आड़ का मौसम / रंजना वर्मा

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लो देखो आ गया महगाइयों की आड़ का मौसम।
तबाही नाश फैलाता है आया बाढ़ का मौसम॥

हजारों योजनाएँ पी गयीं आश्वासनों का रस
नहीं निकले कभी जो उस अकल की दाढ़ का मौसम॥

हुए अरमान सारे धूलि कण से क्षुद्र अभिशापित
सहा जाये भला कैसे ये बोझ पहाड़ का मौसम॥

हुए हड़ताल दंगो से हैं कारागार नाकारे
भला कब तक उठाये सर ये जेल तिहाड़ का मौसम॥

खड़े थे शीश पर जो पांव की मिट्टी उठाते हैं
यहाँ है फूलता फलता चने के झाड़ का मौसम॥