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लो मौसस की रेल चली / मधुसूदन साहा

लो मौसम की रेल चली
शोर मचाती
धूँआ उड़ाती
छूक-छूक करती रेल चली।
इसमें बारह डिब्बे
हर डिब्बे में दो ही बर्थ,
सीटें उन पर केवल चार
समझ गए न इसका अर्थ?

बारहमासा रेल चली
सीटी देती
सबको लेती
फक-फक करती रेल चली।

स्टेशन हैं केवल छह,
जिन पर रुक-रुक चलती यह।
पहले पर लेती है फूल,

दूजे पर उड़ती है धूल।
तीजे पर ज्यों हुई खड़ी,
लगी बरसने खूब झड़ी।
चौथे पर छाई हरियाली
पंचम पर गेहूँ की बाली।

अंतिम स्टेशन पर देखो
बच्चे बजा रहे है न ताली।
धूप खड़ी है नरम-नरम
चिल्लाती लो चाय गरम।

लौट चली लो
टा-टा कर दो
भक-भक करती रेल चली
लो मौसम की रेल चली
शोर मचाती
धूँआ उड़ाती
छूक-छूक करती रेल चली।