लो सुनाने आ गये हैं फिर मियाँ ताजा गज़ल।
उम्र भर की बेकरारी और दो प्याजा गज़ल।
जो मिले कोई बराबर का तो फौरन ठोंक दो,
बात कहने का तरीका हो गयी राजा गज़ल।
जोकरों, जादूगरों, बाजीगरों के बीच में,
बज रही है आजकल जैसे नया बाजा गज़ल।
मैं तुझे रुतबा पुराना रूप दूँ शृंगार दूँ
है बुलाता भीड़ में कोई ज़रा आ जा गज़ल।
मीर, खुसरो, दाग, गालिब ने संवारा है इसे,
बद्र ने, दुष्यन्त ने, बलवीर ने साजा गज़ल।
शेर कोई सिर्फ लफ्जों का खिलौना ही नहीं,
हो न हो जज्बात का हो एक अंदाजा गज़ल।
बात कह लूँ, पीर कह लूँ, तू नहीं, फिर कौन से
पास मेरे बैठ थोड़ा जाने जां आ जा गज़ल।