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लौंगिया / सुमन केशरी
Kavita Kosh से
उस छतनार पेड़ के घेरे में
खिल नहीं सका कोई फूल
लाख जतन के बावजूद
धूप की आस में
कोई पौधा टेढ़ा हुआ
कुछ लम्बोतरे
मानों मौका पाते ही डाल पकड़ झूलने लगेंगे
कुछ लेटे ज़मीन पर
आकाश ताकते उम्मीद में
हरे से पीले पड़ते हुए
उस दिन सुबह
परदा हटाते ही
गुलाबी किरणों से कौंधते
खिलखिलाते दिखे
लौंगिया के फूल
ऐन पेड़ की जड़ पी उगी बेल
उसी से खाद–पानी-हवा-धूप छीनती
याद आई
माँ
उसी पल भीतर कहीं खिलखिलाई
बिटिया ।