लौटना / श्रीप्रकाश शुक्ल
भूख तो बड़ी थी लेकिन उन्हें सिर्फ़ पहुँचना था
उन तक पहुँचाए गए सारे आश्वासन अब तक बेकार हो चुके थे
अनुशासन के नाम पर
उनके पास अब सिर्फ़ एक ज़िद बची थी
कि उन्हें घर पहुँचना है
उनकी ज़िद व घर के बीच एक गहरा तनाव था
जिसमें घर लगातार निथर रहा था !
मुश्किलें विकराल हो रही थीं
जिनके समाधान के लिए वे घर पहुँचना चाह रहे थे
मानों ख़ैरख़्वाह यह घर
उनके ख़ैर-मकदम के लिए वर्षों से खड़ा हो !
उनकी ज़िद लगातार बड़ी हो रही थी
और इस ज़िद में बड़ी हो रही थीं उनकी उम्मीदें
जिसे अब एक घर से ही सम्भव होना था
कितना ताक़तवर था यह 'पहुँचना' कि
एक पथियाई पथरीली ज़मीन पर कभी सायकिल से तो कभी पैदल चलते
ठण्डे पानी की तरह बह रहा था उनके भीतर
जिससे लौटने से अधिक पहुँच पाना सम्भव हो रहा था
घर लौटने से अधिक पहुँचने के लिए होता है
यह तब पता चला जब वे तप्त सड़कों पर
सन्तप्त भाव से लौट रहे थे
और अपनी पुरानी स्मृतियों को सहलाते
नंगे पाँव उस सड़क पर दौड़ रहे थे
जिससे कभी वे गए थे ।
जाना नहीं रही अब एक ख़तरनाक क्रिया
नई सदी में लौटने की यह क्रिया
जाने से कहीं अधिक ख़ौफ़नाक है !