लौटा दो बचपन / नवीन कुमार सिंह
समय तू लौटा दें बचपन, बदल दूँ मैं अपना जीवन
सुनूँगा फिर से बैठ के मैं, अब दादी की कहानी को
मनन कर लूँगा मैं अपने पिता की अमृत बाणी को
फिर से विद्यालय में जाकर, गाऊँगा मै जन गण मन
समय तू लौटा दें बचपन, बदल दूँ मैं अपना जीवन
आम के एक टुकड़े में हम चार हिस्से करवाते थे
उसी टुकड़े को हम भाई, सभी मिलजुल कर खाते थे
वे ही मांगे बटवारा, कि कहते बाँट दो घर आँगन
समय तू लौटा दें बचपन, बदल दूँ मैं अपना जीवन
पुस्तक और कलम को मैं मन का मीत बनाऊँगा
गुरूजी जो पथ दिखलायें, उसी पर चलते जाऊंगा
ज्ञान अर्जित करने में मैं लगा दूंगा अपना तन मन
समय गर लौटा दें बचपन बदल दूँ मैं अपना जीवन
मगर है बात यही सच्ची, समय ना लौट के आता है
गंवाया जिसने आज को है, वही फिर कल पछताता है
मेरे बच्चों इटनक सुनलो, बड़ा अनमोल है ये जीवन
समय गर लौटाता बचपन, बदल देता मैं यह जीवन