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लौटी है फिर बहारें बहारों का क्या करूँ / उर्मिल सत्यभूषण

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लौटी है फिर बहारें बहारों का क्या करूँ
दिलकश बहुत नज़ारें, नज़ारों का क्या करूँ

चाँदी सी चाँदनी में भीगी हुई बुलायें
पेड़ों की ये कतारे कतारों का क्या करूँ

उतरा यह शरद चंदा पानी में डोलत
करता है क्या इशारे, इशारों का क्या करूँ

मेरी शिकस्ता कश्ती साहिल पे रूक गई
कोई मुझे पुकारे, पुकारो का क्या करूँ

तन्हा हूँ मैं ज़मीं पर मेरा चाँद है कहाँ
आँखों में है सितारे सितारों का क्या करूँ

ठंडी हवायें भी मेरा तन मन जला रहीं
शबनम हुई अंगारे, अंगारों का क्या करूँ

उर्मिल चकोर की तरह अंगार चुग रही
नस नस में है शरारे, शरारों का क्या करूँ।