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लौटूँगा बार-बार / असंगघोष
Kavita Kosh से
मैं अब न चाहकर भी
बार-बार लौटूँगा
उस गाँव में
जहाँ पैदा हुआ
पला-पढ़ा और
हासिल किया विरासत में
भेदभाव छुआछूत
तुम्हारी तरह
मेरा मन भी कचोटता है
क्यों पैदा हुआ यहाँ
काश मेरे वश में होता!
न पैदा होना
न महसूसना
न कभी वहाँ लौटना
इतना पढ़-लिख कर
मैं यह सब
सोचता ही क्यों
पड़ा रहता यहीं
तुम्हारी तरह निश्चेत
बार-बार लौटकर नहीं आता
यह तय मानों
मैं लौटूँगा बार-बार
तुम्हें जगाने!