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लौट आओ गाँव में / ज्ञान प्रकाश चौबे
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बैठ गए दो पल
झूठ की नाव में
लौट आओ गाँव में
आँखों पर बँधी पट्टी
घोड़े की दौड़ है
सेहरा मिले जीत का
बाकी सब गौड़ है
मिलेगी ठण्ड कितनी
पैसे की छाँव में
लौट आओ गाँव में
दादी की पोपली हँसी
शामत की घड़ी है
खोई धुएँ-धूल शोर में
दादा की छड़ी है
हँसना नहीं रोना है
कौए की काँव में
लौट आओ गाँव में
चौराहे पर हो रहा
नाटकों का खेल है
हाज़िर है आदमी
आदमीयत गोल है
आती हैं चिट्ठियाँ
भर आँसू आँख में
लौट आओ गाँव में