लौट आओ पापा / रमेश नीलकमल
लौट आओ पापा कि मैं अब नहीं मांगूगी
भूख भर रोटी
देह भर कपड़े
स्नेह भर तुम्हारी पुचकार
कि मैं अब नहीं रोऊंगी
चुपाऊंगी मुन्ने भैया को भी।
लौट आओ पापा कि मां अब बहुत रोती है
तुम्हारे बिना दिन देखती है न रात
रोती है गरियाती है रोज दिल्ली-पंजाब को
जहां तुम चले गए रोटी कमाने
और वहीं के होकर रह गए
लौट आओ पापा
कि लोग अब कहने लगे हैं
कि दिल्ली-पंजाब मजूरी करने गया आदमी
वापस नहीं लौटता अपने घर।
तुम उन्हें झुठला दो न पापा
लौट आओ न पापा!
लौट आओ पापा!
कि बीत गए बारह महीने
कि हमने तुम्हारे बिना किस तरह काटे
किस-किस के ताने न सहे
नहीं बताऊंगी पापा
चुप रहूंगी केवल चुप
देखती रहूंगी तुम्हें भर आंख
और मुसकुराऊंगी
कि मुन्ना भैया भी किलकारी भरेगा
और माँ की उदास आंखों में
दीखने लगोगे तुम।
- मिले मेरी यह चिट्ठी आपको तो पहुंचा देना इसे मेरे पापा तक
जिनका पता-ठिकाना मैं नहीं जानती और न जानती है माँ ही।