भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लौट गए पिता / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
गिरवी रखे
खेत
और घर के प्रति
मोह से भरे
जुलजुल पिता
जब आये थे शहर
उनकी आँखों में
दिपदिपा रहे थे
सपने
आज लौट गये हैं
आँखों में
सपनों की राख लिए।