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ल्याए लादि बादि ही लगावन हमारे गरैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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ल्याए लादि बादि ही लगावन हमारे गरैं,
हम सब जानी कहौ सुजस-कहानी ना ।
कहै ’रतनाकर’ गुनाकर गुबिंद हूँ कें,
गुननि अनत बेधि सिमिटि समानी ना ॥
हाथ बिन मोल हूँ बिकी न मग हूँ मैं कहँ,
तापै बटमार-टोल लोल हूँ लुभानी ना ।
केती मिली मुकुति बधूबर के कूबर में,
ऊबर भई जौ मधुपुर में समानी ना ॥43॥