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वंदना / रामचंद्र शुक्ल
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(1)
प्रथम कारण जो सब कार्य का,
विपुल विश्व विधायक भाव जो।
सतत देख रहे जिसकी छटा,
मनुज कल्पित कर्मकलाप में ।।
(2)
हम उसी प्रभु से यह माँगते,
जब कभी हम कर्म प्रवृत्ता हों।
सुगम तू करे दे पथ को प्रभो!
विकट संकट कंटक फेंक के ।।
(3)
प्रकृति की यदि चाल नहीं कहीं,
जगत् के शुभ के हित बाँधता।
विकट आनन खोल अभी यही,
उदर बीच हमें धरती धरा ।।
('बाल हितैषी', जनवरी, 1915)