वंदे उत्कल जननी / लक्ष्मीकांत महापात्र / दिनेश कुमार माली
रचनाकार: लक्ष्मीकांत महापात्र (1889-1953) “कान्त-कवि”
जन्मस्थान: भद्रक, बालेश्वर
कविता संग्रह: जातीय संगीत, जीवन-संगीत, चटक- चंद्रहास- चंपू, धर्मसंगीत, बालचर, चिड़ियाखाना, पाठमाला
वंदे उत्कल जननी
चारू हास्यमयी चारू भाष्यमयी
जननी, जननी, जननी।
पूत पयोधि विधौत शरीरा
ताल तमाल सुशोभित तीरा
शुभ्र तटनीतट शीतल समीरा
जननी, जननी, जननी।
घन- घन वनभूमि राजित अंगे
नील भूधरमाला साजे तरंगे
कल- कल मुखरित चारू विहंगे
जननी, जननी ,जननी
सुंदर धान्य सुशोभित क्षेत्र
ज्ञान विज्ञान प्रदर्शित नेत्र
योगी ऋषिगण कुटीर पवित्र
जननी, जननी ,जननी
सुंदर मंदिर मंडित देशा
चारु कलावली शोभित वेशा
पूर्ण तीर्थमय पूर्ण प्रदेशा
जननी ,जननी, जननी।
उत्कल शूरवीर दर्पित गेहा
अरिकुल रुधिर चर्चित देहा
विश्व भूमण्डल कृतवर स्नेहा
जननी, जननी, जननी।
कविकुल मुकुट मुनिजन वंदनीय
भुवन विपोषित कीर्ति अनिन्दनीय
धन्ये, पुण्ये चिर शरण्ये
जननी, जननी, जननी।