वंदे मातरम् / विश्वनाथ शर्मा

क़ौम के ख़ादिम की है जागीर वंदे मातरम्,
मुल्क के है वास्ते अकसीर वंदे मातरम्।

ज़ालिमों को है उधर बंदूक अपनी पर ग़रूर,
है इधर हम बेकसों का तीर वंदे मातरम्।

क़त्ल कर हमको न क़ातिल तू, हमारे ख़ून से,
तेग़ पर हो जाएगा तहरीर वंदे मातरम्।

फ़िक्र क्या, जल्लाद ने गर क़त्ल पर बांधी कमर,
रोक देगा ज़ोर से शमशीर वंदे मातरम्।

जुल्म से गर कर दिया ख़ामोश मुझको देखना,
बोल उट्ठेगी मेरी तस्वीर वंदे मातरम्।

सरज़मीं इंग्लैंड की हिल जाएगी दो रोज़ में,
गर दिखाएगी कमी तासीर वंदे मातरम्।

संतरी भी मुज़तरिब है जब कि हर झंकार से
बोलती है जेल में जं़जीर वंदे मातरम्।

रचनाकार: सन 1930

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