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वंश-वृक्ष / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सबसे पहले वंश-वृक्ष से उड़े थे बाबा
उसके बाद दादी की बारी थी
पिता के पहले उनके बड़े भाई को
उड़ना था — लेकिन पिता उड़ गए
माँ पिता के बिना अकेले नहीं
रह सकती थीं — इसलिए वे भी
उड़ गईं
सबसे बड़ा दुख छोटे भाई का उड़ना था
वह मुश्किल से देख पाया था, बीस बसन्त
उड़ने का कोई क्रम नहीं था
न कोई तर्क कि पहले या बाद में
कौन उड़ेगा
वंश-वृक्ष की डालियाँ कई लोगों के
उड़ने से ख़ाली हो चुकी थी
वंश-वृक्ष कोई स्थाई जगह नहीं
जो इस पर बैठता है — वह अपने
उड़ने की नियति के साथ आता है
मुझे अपने उड़ने की तारीख़ नहीं मालूम
लेकिन इतना तय है कि एक दिन
मुझे भी उड़ना है