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वक़त जो वक्त की समझ नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
वक़त जो वक्त की समझा नहीं है
उसे मिलता कभी मौका नहीं है
अगर मानो तो अपना है ज़माना
बड़ा इंसान से रिश्ता नहीं है
ख़ुदा की है अजब कारीगरी ये
बहुत कुछ है जिसे देखा नहीं है
सभी के पेट में है भूख पकती
न है कोई कि जो भूखा नहीं है
करे तक़सीम जो सबको मसर्रत
बड़ा उस से कोई दाता नहीं है
दुआएँ बर सभी की रोज़ आयें
बिना रब के किये होता नहीं है
हमेशा याद आता मुफ़लिसी में
सुखों में याद वो आता नहीं है