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वक़्ते-रुख़सत यूँ करम फ़रमाइए / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
वक़्ते-रुख़सत यूँ करम फ़रमाइए
जाते-जाते जान भी ले जाइए,
राह में बैठा हूँ कब से मुंतज़िर
आइए, अब आप तो आ जाइए,
चाँदनी, बरसात, ख़ुशबू, कहकशाँ
कैसे भी हों आप अब आ जाइए,
आप से अपनी यही है इल्तिज़ा
आप मेरे घर में अब बस जाइए,
आप से आती है ख़ुशबू हर घड़ी
आइए साँसें मेरी महकाइए।