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वक़्ते-रुख़्सत आंख से आंसू नहीं बहने दिया / ईश्वरदत्त अंजुम

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वक़्ते-रुख़्सत आंख से आंसू नहीं बहने दिया
आंसुओं को हम ने हाले-दिल नहीं कहने दिया

दे गया पैगामे-उल्फ़त आंखों आंखों में मुझे
लब-कुशाई की न उस ने फ़ासिला रहने दिया

दो दिलों ने बात कर के दूरियों के बावजूद
सिलसिला इक गुफ्तगू का दरमियाँ रहने दिया

टीस दिल में आज भी है दफ़्न, बीते वक़्त की
क्यों न उस ने हाल दिल का बरमला कहने दिया

रो दिये थे फेर कर मुंह जिस घड़ी बिछुडा था वो
हम ने अपने दिल को सैले-अश्क़ में बहने दिया

अब भी तन्हाई में उसको याद कर लेता हूँ मैं
जिस ने हाले-दिल न मुझको आज तक कहने दिया

फिर न पूछा हाल मेरा, फिर न ली कोई खबर
उस ने 'अंजुम' मुझ को मेरे हाल पर रहने दिया।