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वक़्त ऐसा भी चल के आता है / राम नाथ बेख़बर

वक़्त ऐसा भी चल के आता है
दर्द दिल का पिघल के आता है।

ज़ख्म भरते नहीं हैं उसके तो
रोज मरहम बदल के आता है।

लूट लेंगे वो निर्भया को फिर
कौन घर से निकल के आता है।

भूखा प्यासा है झोपड़ी में जो
रोज खेतों में जल के आता है।

चाँद हर दिन नया सा है लगता
अपना चोला बदल के आता है।

बन्द होती हैं जब कई राहें
रस्ता नूतन निकल के आता है।

अक्स मेरा है कॉर्बन कॉपी
मेरे साँचे में ढ़ल के आता है।