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वक़्त का दरपन बूढ़ी आँखें / वर्षा सिंह
Kavita Kosh से
वक़्त का दरपन बूढ़ी आँखें ।
उम्र की उतरन बूढ़ी आँखें ।
कौन समझ पाएगा पीड़ा
ओढ़े सिहरन बूढ़ी आँखें ।
जीवन के सोपान यही हैं
बचपन, यौवन, बूढ़ी आँखें ।
चप्पा-चप्पा बिखरी यादें
बाँधे बंधन बूढ़ी आँखें ।
टूटा चश्मा घिसी कमानी
चाह की खुरचन बूढ़ी आँखें ।
एक इबारत सुख की खातिर
बाँचे कतरन बूढ़ी आँखें ।
सपनों में देखा करती हैं
‘वर्षा’-सावन बूढ़ी आँखें ।