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वक़्त की राय कर अनसुनी आपने / विनोद तिवारी

वक़्त की राय कर अनसुनी आपने
राह सुविधा भरी ही चुनी आपने

नारेबाज़ी अँधेरों की सुनते रहे
चाँदनी की व्यथा कब सुनी आपने

बीता कल याद करके न पछ्ताइए
पीर की है स्वयं दोगुनी आपने

उलझनें सलवटें दाग़ ही दाग़ हैं
अपनी चादर तो ख़ुद ही बुनी आपने

शून्य से चल के पहुँचे महज़ शून्य तक
ख़ुद को समझा था सबसे गुनी आपने